#Editorial संकटमोचन हनुमान को ‘संकट’ में डाला राजनैतिक भोपाओं ने – व्यंग्यकार अशोक चतुर्वेदी

हनुमान ‘भोपूं’ से परेशान हो ना हों लेकिन ‘भोपाओं’ से परेशान जरूर हैं।

#Citylive Editorial – हनुमान ‘भोपूं’ से परेशान हो ना हों लेकिन ‘भोपाओं’ से परेशान जरूर हैं। सदियों से शांति से साम्राज्य चल रहा था….जो राम की स्तुति करता, वह हनुमान को भी ढोक करके निकल जाता। शनि-मंगल पर भक्तों के रैले ने भी कभी नींद नहीं उड़ाई जितनी इन ‘भोपाओं’ ने उड़ा दी है। संकटमोचन हनुमान के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि ‘भोपाओं’ ने जो जाल बुना है…उससे निकलने की युक्ति नहीं सूझ रही।

इष्ट राम तो जलसमाधि लेकर मुक्ति पा गए लेकिन हनुमान को कलियुग का देवता बनाकर सदा-सदा के लिए छोड़ गए। हनुमान ने भी सत्ता को बखूबी संभाला। जब भी भक्तों पर संकट आए…उनके संकट हरे। याद होगा आत्माराम दुबे के पुत्र तुलसीदास का वाक्या, जब अकबर ने उन्हें दरबार में तलब कर प्रताड़ित करने की कोशिश की। तुलसीदास ने हनुमान को पुकारा। थोड़ी देर में ही वानरों की सेना ने मुगल गार्डन की जड़ें हिला डालीं। कहते हैं अकबर को भी नतमस्तक होना पड़ा और तुलसीदार को सम्मान के साथ छोड़ना पड़ा। कहा जाता है कि हनुमान चालीसा उसी दौरान गढ़ी गई। कौन नहीं जानता….कैसे हनुमान ने रावण की अशोक वाटिका में उत्पात मचा सर्वशक्मिान रावण को हिला दिया था।

अगर आज भी लंका तक सेतु बनाने की दरकार हो तो हनुमान कर दिखाएं लेकिन ‘भोपाओं’ के ‘भोपूं’ ने उन्हें संकट में डाल दिया है। एक रावण हो तो निबट भी लें लेकिन यहां तो असंख्य रावण हैं। 

अगर आज भी लंका तक सेतु बनाने की दरकार हो तो हनुमान कर दिखाएं लेकिन ‘भोपाओं’ के ‘भोपूं’ ने उन्हें संकट में डाल दिया है। एक रावण हो तो निबट भी लें लेकिन यहां तो असंख्य रावण हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रभु राम को तो विभिषण का साथ मिल गया था लेकिन हनुमान को कोई विभिषण भी नजर नहीं आता। हनुमान परेशान हैं…..। लोगों ने पत्थर को गेरु रंग में रंगकर बीच सड़क बिठा पान की दुकान चलाई…हनुमान नहीं बोले। जमीन पर कब्जे की नियत से हनुमान को आगे कर मंदिर बना दिया….हनुमान चुप रहे। सालों से राम का इस्तेमाल करते रहे….तब भी हनुमान शांत रहे लेकिन अब जो संकट इन ‘भोपाओं’ ने खड़ा किया, उससे निकलने की तरकीब नजर नहीं आ रही।

हनुमान देवता है, राज ठाकरे की तरह बीच सड़क पर आकर यह तो नहीं कह सकते कि ‘भोपूं’ की राजनीति में उन्हें ना घसीटा जाए…..। ‘भोपा’ जानते हैं हनुमान के भक्त बड़ी संख्या में हैं। राम से भी ज्यादा अगर कोई देवता पुजता है तो वह है हनुमान…। यही वजह है कि ‘भोपाओं’ ने ‘भोपूं’ का जवाब हनुमान चालीसा से निकाला है। हनुमान परेशान हैं…राजनीति उन्हें आती नहीं। कूटनीति वे जानते नहीं….यह सब तो उन्होंने प्रभु राम के लिए छोड़ रखा था। वे तो राम के ऐसे कार्यकर्ता रहे कि एक आवाज पर आवाज से भी तेज गति से कार्य को अंजाम देते थे। लेकिन उन्हें क्या पता था ये ‘भोपा’ उन्हें राजनीति में भी घसीट लाएंगे। हनुमान तो खुश थे कि जिन्हे अब तक समझ नहीं थी वे भी अब उनके नाम का गुणगान कर रहे हैं। प्रदेश के सीएम अशोक गहलोत का हनुमान जन्मोत्सव पर मंदिरों में सुंदरकांड करवाना….हनुमानजी को खूब रास आया था। बर्थ-डे गिफ्ट इससे बढ़िया और क्या हो सकता था? लेकिन मायानगरी के एक ‘भोपा’ ने हनुमान को परेशानी में डाल दिया है। खुद की राजनीति चमकाने के लिए वे मसजिदों पर बजने वाले ‘भोपूंओं’ के बदले हनुमान चालीसा को ले आए हैं।

हनुमानजी को हनुमान चालीसा से परहेज नहीं है…..दिक्कत यह है कि उनके नाम की ब्रांडिग का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है।

हनुमानजी को हनुमान चालीसा से परहेज नहीं है…..दिक्कत यह है कि उनके नाम की ब्रांडिग का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। हनुमानजी ने जब से होश संभाला है….बड़े से बड़े झंझावात से नहीं हिले। एक बार तो वे सूरज देवता को ही निगल गए थे। लक्ष्मण के लिए औषधी लेने गए तो पहाड़ उठा लाए…। आज भी चुटकी में पहाड़ उठा सकते हैं, लेकिन यहां ‘भोपूं’ और ‘भोपाओं’ के विवाद में खुद को असहज महसूस कर रहे हैं। सोच रहे हैं, अगर यह सब हनुमान कृपा पाने के लिए किया जा रहा है तो वे गुड़-चना या एक फूल चढ़ाने से ही खुश हो जाते हैं….इसके लिए इतना बतगंढ़ करने की जरुरत क्या है?

अब हनुमान को कौन समझाए कि कलियुग का मानव कितना धूर्त हो गया है। मन्नत मांगने मंदिर जाता है, अपनी गरज से और वोट की दरकार हो तो बीच चौराहा तमाशा बनाने से भी गुरेज नहीं करता… अपनी गरज से। उसे ना हनुमान से मतलब है और ना ही हनुमान चालीसा से मतलब है…और ना ही राम मंदिर से….उसे तो बस सरोकार है अपनी सत्ता से। और सत्ता तक पहुंचने के लिए वह राम-हनुमान क्या किसी और देवता को भी चौराहे पर ला सकता है। जरूरत बस इतनी है कि उस इलाके में किस देवता की पूछ ज्यादा है।
व्यंग्यकार अशोक चतुर्वेदी

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